छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश। खांसी के इलाज के लिए बच्चों को दी जाने वाली दवा “Coldrif” ने अब तक 11 नौनिहालों की जानें ले ली हैं। प्रारंभिक जांच में पाया गया है कि दवा में डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) नामक जहरीला रसायन मौजूद था, जिसके कारण बच्चों की किडनी फेल होने की आशंका जताई जा रही है। यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि सुरक्षित दवा, कड़े गुणवत्ता नियंत्रण और जवाबदेही कितनी जरूरी है।
मामले की जांच में सामने आया है कि जहरीला बैच घटिया कच्चे माल और लापरवाह गुणवत्ता नियंत्रण का नतीजा है। निर्माता कंपनी की जिम्मेदारी सबसे बड़ी मानी जा रही है, क्योंकि दवा को बाजार में भेजने से पहले नियमों का पालन करना अनिवार्य था।
प्रशासन ने डॉक्टर को गिरफ्तार किया है जिन्होंने यह दवा बच्चों को दी, लेकिन कानूनी और नैतिक दृष्टि से यह सीधे हत्या का दोष साबित नहीं करता। डॉक्टर पर कार्रवाई प्रारंभिक कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई है, जबकि असली दोष निर्माता कंपनी और सिस्टम की खामी में है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में दवा की मंजूरी और प्रारंभिक परीक्षण तो होते हैं, लेकिन हर बैच की जांच नहीं होती, जिससे घटिया या जहरीला बैच बाजार में पहुँच सकता है। वर्तमान में राज्य और केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग forensic जांच कर रहे हैं ताकि दोषियों की सही पहचान हो और जवाबदेही तय की जा सके।
यह त्रासदी आम जनता के लिए चेतावनी है कि सिर्फ दवा का नाम या अनुमति होने का मतलब सुरक्षा नहीं है। सख्त नियामक निगरानी, गुणवत्ता नियंत्रण और जवाबदेही ही ऐसी घटनाओं को रोकने में कारगर साबित हो सकते हैं।