भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना के सेवानिवृत्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय की कमान संभालने वाले न्यायमूर्ति बी. आर. गवई जब शनिवार को पहली बार अपने गृह राज्य महाराष्ट्र पहुंचे, तो एक महत्वपूर्ण शिष्टाचार चूक ने पूरे प्रशासनिक तंत्र में खलबली मचा दी।
मुंबई में आयोजित महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में बोलते हुए CJI गवई ने स्पष्ट शब्दों में नाराजगी जताई कि उनके आगमन पर राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी और मुंबई पुलिस आयुक्त जैसे शीर्ष अधिकारी उपस्थित नहीं थे। उन्होंने कहा—“आप खुद सोचिए, यह व्यवहार सही है या गलत?”
गंभीर लहजे में उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि न्यायपालिका इसी तरह कार्यपालिका के प्रति कोई असम्मान दिखाती तो ‘अनुच्छेद 142’ को लेकर देशभर में बहस छिड़ जाती। उन्होंने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों—न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका—की समानता और पारस्परिक सम्मान को दोहराते हुए कहा कि यह सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि संवैधानिक संतुलन का प्रतीक है।
उनकी टिप्पणी के बाद अधिकारियों में हलचल देखी गई और जब वह चैत्यभूमि पहुँचे, तब मुख्य सचिव सुजाता सौनिक, डीजीपी रश्मि शुक्ला और मुंबई पुलिस आयुक्त देवन भारती वहां मौजूद रहे।
यह घटना न सिर्फ एक उच्च न्यायिक पदाधिकारी के अपमान की ओर संकेत करती है, बल्कि इस सवाल को भी जन्म देती है कि क्या कार्यपालिका की यह उदासीनता महज भूल थी, या फिर एक गहरी व्यवस्था संबंधी चुनौती का संकेत?
मुख्य न्यायाधीश का यह सार्वजनिक असंतोष केवल एक प्रोटोकॉल की अनदेखी नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना—आपसी सम्मान—पर एक विचारणीय टिप्पणी है। यदि भारत जैसे गणतंत्र में शीर्ष संवैधानिक पदों के प्रति यही दृष्टिकोण रहेगा, तो संस्थागत संतुलन और नागरिक विश्वास दोनों ही डगमगा सकते हैं।
> यह खबर महज एक घटना नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मर्यादा की एक गूंज है—जिसे नजरअंदाज करना आने वाली पीढ़ियों के लिए एक गलत परंपरा गढ़ने जैसा होगा।