ग्वालियर। देश के सबसे संपन्न राजघरानों में से एक, सिंधिया परिवार की लगभग ₹40,000 करोड़ मूल्य की पैतृक संपत्ति को लेकर चल रहा कानूनी विवाद शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा। ग्वालियर हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी तीनों बुआओं — वसुंधरा राजे, यशोधरा राजे और ऊषा राजे — को आदेश दिया है कि वे आपसी सहमति से इस विवाद का समाधान करें। कोर्ट ने इसके लिए 90 दिन की मोहलत दी है।
यह विवाद 1961 में महाराज जीवाजीराव सिंधिया की मृत्यु के बाद शुरू हुआ था। महाराज ने कोई वसीयत नहीं छोड़ी थी, जिसके कारण संपत्ति का स्पष्ट बंटवारा नहीं हो सका। इसके बाद माधवराव सिंधिया के असमय निधन ने मामला और जटिल बना दिया। बुआओं का कहना है कि उन्हें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बराबरी का अधिकार है। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया का दावा है कि पारंपरिक Primogeniture नियम लागू होना चाहिए, जिसके तहत सबसे बड़े बेटे को पूरी संपत्ति मिलती है।
इस पूरे विवाद की औपचारिक कानूनी शुरुआत 2010 में हुई थी, जब बुआओं ने अदालत का रुख किया। अब हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि समझौते की कोशिश और आपसी सहमति से हल निकालना प्राथमिकता होनी चाहिए, अन्यथा मामला पुनः सुनवाई के लिए बहाल होगा।
विवादित संपत्तियों में ग्वालियर का ऐतिहासिक जयविलास पैलेस, शिवपुरी का माधव विलास पैलेस, दिल्ली स्थित ग्वालियर हाउस, राजपुर रोड की बहुमूल्य ज़मीनें और लगभग 13 ट्रस्टों की संपत्तियाँ शामिल हैं। कुल 28 पक्षकार इस विवाद में जुड़े हुए हैं।
सिंधिया परिवार की यह कानूनी लड़ाई न केवल पारिवारिक विरासत का मामला है, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों में भी गहरी छाप रखती है। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि क्या परिवार आपसी समझदारी से विवाद का समाधान करेगा, या अदालत को निर्णायक हस्तक्षेप करना पड़ेगा।