ग्वालियर। सोशल मीडिया पर इन दिनों एक विवादास्पद बहस ने नया मोड़ ले लिया है। कुछ यूजर्स डॉ. भीमराव अंबेडकर की संविधान निर्माण में भूमिका पर सवाल उठाते हुए बी.एन. राव को असली लेखक बताने लगे हैं। वहीं, दूसरी ओर दलित संगठनों ने इसे बाबा साहेब के योगदान को कमतर दिखाने का प्रयास बताया है। यह बहस अब धीरे-धीरे वैचारिक टकराव का रूप लेती दिख रही है, जिसकी झलक ग्वालियर के सोशल प्लेटफॉर्म्स पर स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
फैक्ट चेक के अनुसार, संविधान का प्रारंभिक मसौदा भले ही बी.एन. राव ने तकनीकी सलाहकार के रूप में तैयार किया था, परंतु उसके अंतिम स्वरूप, विचार और दिशा को संविधान सभा की बहसों में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ही निर्णायक रूप दिया। भारत सरकार के आधिकारिक अभिलेखों और अनेक ऐतिहासिक दस्तावेजों में यह स्पष्ट है कि डॉ. अंबेडकर को “भारतीय संविधान के शिल्पकार” के रूप में ही मान्यता प्राप्त है।
इस प्रकार, सोशल मीडिया पर चल रही “बी.एन. राव ही असली लेखक” वाली बातें भ्रामक और तथ्यों से परे हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेद स्वाभाविक हैं, परंतु इतिहास और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना समाज में विभाजन की जड़ बन सकता है। अंबेडकर और राव दोनों ने अपने-अपने स्तर पर संविधान निर्माण में अहम योगदान दिया — एक विचारक और दार्शनिक दृष्टि से, दूसरा विधिक संरचना और तकनीकी परामर्श के रूप में। किसी एक का अपमान करना या दूसरे को नकारना, भारतीय संविधान की आत्मा के विपरीत है।
इसलिए आवश्यक है कि सोशल मीडिया की बहसों में विवेक, संवेदनशीलता और सत्य की मर्यादा बनाए रखी जाए, ताकि समाज में सौहार्द और तथ्य आधारित संवाद कायम रह सके।