उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसमें सबऑर्डिनेट शब्द की कोई जगह नहीं है। कोई भी न्यायालय सबॉर्डनेट नहीं, इसमें बदलाव होना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जब मजिस्ट्रेट या जिला जज फैसला लिखता है उनके मन में एक शंका रहती है कि मेरे फैसले पर क्या टिप्पणी होगी। वह फैसला उसके भविष्य को निर्वहन करता है।” उन्होंने आगे कहा कि हम सभी को इनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। राजस्थान के जयपुर में एआईआर पुस्तकालय के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि अधिवक्ता संघ को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि उद्योगपति एवं कॉर्पोरेट समूहों को अन्य संस्थानों को प्रदान की जाने वाली सहायता की तर्ज पर न्यायपालिका के कार्यान्वयन में भी सहायता प्रदान करनी चाहिए। अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि कॉर्पोरेट्स के पास CSR फंड है और उनको लोकल अदालतों में इन्वेस्ट करना चाहिए। संसद में कानून पारित कर नागरिक संहिता में हुए परिवर्तन पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना बताया। उन्होंने इसे दंडविधान से न्यायविधान की यात्रा बताते हुए कहा कि लंबे समय की मांग के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन कानूनों को निरस्त किया गया है जोकि नए वकीलों के लिए एक वरदान हैं। भारतीय न्याय संहिता सहित तीन कानूनों के पारित होते समय राज्यसभा के सभापति के रूप में स्वयं की उपस्थिति के अनुभवों को याद करते हुए कहा कि एक बहुत शक्तिशाली समिति ने इन कानूनों के प्रत्येक प्रावधान पर विचार किया। उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने इस बदलाव में गहराई से जांच की है तथा तकनीक की मदद से प्रत्येक प्रावधान की पृष्ठभूमि को बारीकी से देखा गया है। देश में ज़िला न्यायालयों, वहाँ कार्यरत वकीलों एवं आम आदमी की…