कार्तिक मास शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले छठ पर्व पर ‘उगते सूरज की पूजा’ तो संसार का विधान है, पर केवल और केवल हम ‘भारतवासी’ अस्ताचल सूर्य की भी अराधना करते हैं, और वो भी, उगते सूर्य से पहले। अगर ‘उदय’ का ‘अस्त’ भौगोलिक नियम है, तो ‘अस्त’ का ‘उदय’ प्राकृतिक और आध्यात्मिक सत्य।
इस पर्व में लोक संस्कृति का भी समावेश है इस पर्व में माटी की सुगन्धी जुड़ी है इसके समस्त गीत लोक भाषा में ही है।ये पर्व प्रकृति प्रेम का अनूठा उदाहरण है जल में खड़े होकर सूर्यदेव को जल से अर्घ्य देना।
आज जब हम पर्यावरण संकट से गुज़र रहे हैं तब छठ पर्व प्रकृति प्रेम का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।प्रकृति के अंतिम स्वरूप और ऊर्जा के अक्षुण्ण स्रोत एक मात्र लौकिक देव भगवान भास्कर की अराधना का पर्व “छठ” जिसे बाराबंकी न्यायिक परिवार ने मनाते हुए लोक कल्याण की मनोकामना मांगते हुए भगवान दिवाकर से प्रार्थना कि शुभ कर्म को जागृत करे और अशुभ कर्म का क्षय करे।