9 मई 2025 को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव और संभावित संघर्ष को लेकर अमेरिका के रुख को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, “हम युद्ध के बीच में शामिल नहीं होने जा रहे हैं, यह मूल रूप से हमारा कोई काम नहीं है।” यह बयान भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के तनाव और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में आया, जिसे सोशल मीडिया और समाचारों में व्यापक रूप से चर्चा मिल रही है। वेंस के इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका की तटस्थता को रेखांकित किया है।
बयान का संदर्भवेंस का बयान भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच आया है, जिसे कुछ लोग ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में संदर्भित कर रहे हैं। हालांकि, इस ऑपरेशन की आधिकारिक पुष्टि या विस्तृत जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है। सोशल मीडिया पर कई उपयोगकर्ताओं ने वेंस के बयान को उद्धृत करते हुए इसे अमेरिका की ओर से युद्ध में हस्तक्षेप न करने की नीति के रूप में देखा। एक उपयोगकर्ता ने लिखा, “अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने साफ कहा कि हम दोनों पक्षों को तनाव कम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, लेकिन यह हमारा काम नहीं है और हम इसे कंट्रोल नहीं करेंगे।”वेंस ने अपने साक्षात्कार में यह भी कहा कि अमेरिका दोनों पक्षों को शांत रहने और तनाव कम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी नहीं लेगा कि युद्ध परमाणु संघर्ष में न बदले।
उन्होंने कहा, “हम भारत और पाकिस्तान से हथियार डालने के लिए नहीं कह सकते, क्योंकि ये उनका काम नहीं है। हमारी अपेक्षा यह है कि यह युद्ध परमाणु संघर्ष में नहीं बदलेगा।”अमेरिका की तटस्थता का इतिहासवेंस का यह बयान अमेरिका की उस विदेश नीति के अनुरूप है, जिसमें वह उन संघर्षों में हस्तक्षेप से बचता है, जिनका उसके राष्ट्रीय हितों से सीधा संबंध नहीं होता। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में, अमेरिका ने क्षेत्रीय संघर्षों में अपनी भूमिका को सीमित करने की नीति अपनाई है।
उदाहरण के लिए, सीरिया में अमेरिका की सीमित दिलचस्पी को देखते हुए, उसने इजराइल को क्षेत्रीय खतरों से निपटने के लिए खुली छूट दी है।विश्लेषकों का मानना है कि वेंस का बयान भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को देखते हुए अमेरिका की सावधानीपूर्ण रणनीति को दर्शाता है। दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस हैं, और किसी भी संघर्ष का वैश्विक प्रभाव हो सकता है। अमेरिका का यह रुख यह भी संकेत देता है कि वह दोनों देशों को अपनी समस्याओं को कूटनीतिक तरीके से हल करने के लिए प्रेरित करेगा, न कि सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से।सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएंवेंस के बयान ने सोशल मीडिया, विशेष रूप से एक्स प्लेटफॉर्म पर, व्यापक चर्चा को जन्म दिया। कुछ उपयोगकर्ताओं ने इसे अमेरिका की ‘जंगखोर’ छवि के विपरीत देखा। एक उपयोगकर्ता ने लिखा, “अमेरिका उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस कह रहे हैं- ‘It’s none of our business.’ मतलब हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है।
उधर हमारे विदेशमंत्री उन्हें पल-पल की खबर देने में लगे थे।”दूसरी ओर, कुछ लोगों ने वेंस के बयान को भारत के लिए एक अवसर के रूप में देखा। एक पोस्ट में लिखा गया, “पाकिस्तान अकेला पड़ गया है!” यह दर्शाता है कि कुछ भारतीय उपयोगकर्ता मानते हैं कि अमेरिका की तटस्थता भारत के पक्ष में हो सकती है।वैश्विक परिप्रेक्ष्यवेंस का बयान उस समय आया है जब वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिति पहले से ही तनावपूर्ण है। रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में इजराइल-हमास संघर्ष जैसे मुद्दों ने वैश्विक शक्तियों को विभाजित कर रखा है। अमेरिका, जो पहले विश्व के कई हिस्सों में अपनी सैन्य उपस्थिति के लिए जाना जाता था, अब अपनी विदेश नीति में अधिक चयनात्मक दृष्टिकोण अपना रहा है। यह नीति न केवल भारत-पाकिस्तान तनाव पर, बल्कि अन्य क्षेत्रीय संघर्षों पर भी लागू होती है।विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की यह तटस्थता भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए एक संदेश है कि उन्हें अपने मतभेदों को बातचीत के जरिए सुलझाना होगा। साथ ही, यह वैश्विक समुदाय के लिए भी एक संकेत है कि अमेरिका अब हर संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार नहीं है।
जे.डी. वेंस का बयान अमेरिका की वर्तमान विदेश नीति का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें वह उन युद्धों और संघर्षों से दूरी बनाए रखना चाहता है, जो उसके प्रत्यक्ष हितों को प्रभावित नहीं करते। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच यह बयान दोनों देशों को कूटनीति और संयम की ओर प्रेरित करता है। हालांकि, यह बयान यह भी दर्शाता है कि अमेरिका क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रयासरत रहेगा, लेकिन सैन्य हस्तक्षेप से बचेगा। सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं भारत और पाकिस्तान के बीच गहरे तनाव और वैश्विक शक्तियों की भूमिका पर बहस को और तेज कर सकती हैं।