‘साहित्य का धर्म’ पुस्तक की समीक्षा: साहित्यकारों के लिए मार्गदर्शक – डॉ. सुरेश सम्राट

ग्वालियर: मध्य भारतीय हिन्दी साहित्य सभा ग्वालियर द्वारा मासिक पाठक मंच कार्यक्रम में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर द्वारा लिखित पुस्तक ‘साहित्य का धर्म’ की समीक्षा की गई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. सुरेश सम्राट, अध्यक्ष डॉ. पद्मा शर्मा, वरिष्ठ समीक्षक डॉ. आशा वर्मा, तथा युवा साहित्यकार पलक सिकरवार और जान्हवी नाईक ने भी अपनी राय व्यक्त की।

मुख्य अतिथि डॉ. सुरेश सम्राट ने पुस्तक को साहित्य जगत की महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए कहा कि आजकल साहित्यिक आयोजनों का उद्देश्य केवल खुद को प्रतिष्ठित करना रह गया है, जबकि श्रीधर पराड़कर जैसे लेखक साहित्यकारों को यह बताते हैं कि उन्हें क्या और क्यों रचना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुस्तक में देशभर के साहित्यिक परिदृश्य को बिना किसी भेदभाव के उजागर किया गया है। विशेष रूप से दक्षिण भारत की साहित्यिक निधि पर किए गए उल्लेख को सराहा गया।

डॉ. पद्मा शर्मा ने पुस्तक को 21वीं सदी की गीता की संज्ञा देते हुए कहा कि यह युवा साहित्यकारों के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ है। उन्होंने सोशल मीडिया के दबाव में उलझे साहित्यकारों की कृतियों के क्षणजीवी होने की चिंता जताई और वरिष्ठ पीढ़ी से संवाद की आवश्यकता को भी समझाया।

समीक्षक जान्हवी नाईक ने पुस्तक के 18 अध्यायों को श्रीमद्भागवतगीता से जोड़ते हुए कहा कि यह पुस्तक साहित्यकारों और विशेषकर युवाओं के संशय को दूर कर मार्गदर्शन करती है। पलक सिकरवार ने बताया कि लेखक वर्तमान साहित्य जगत में व्याप्त समस्याओं से परिचित करवा रहे हैं और उनका समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं।

डॉ. आशा वर्मा ने कहा कि साहित्य का धर्म सिर्फ कविता या काव्य पाठ करने में नहीं है, बल्कि समाज में चेतना जागृत करने में है।

इस कार्यक्रम में साहित्य सभा के पदाधिकारी और साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे, जिन्होंने श्रीधर पराड़कर की पुस्तक की सराहना की और साहित्य के सही मार्गदर्शन के महत्व को स्वीकार किया।

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