हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और क्षेत्रीय राजनीति के गलियारों में हलचल मचा दी है। खबर यह है कि पाकिस्तान, जो सार्वजनिक रूप से इजरायल को मान्यता नहीं देता और गाजा में इजरायली कार्रवाइयों के खिलाफ मुखर रहा है, उसकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने यहूदी राष्ट्र के साथ गुप्त संबंध स्थापित किए हैं। एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल, जिसमें पत्रकार, शोधकर्ता और आईएसआई के एजेंट शामिल थे, ने इजरायल के हयोम शहर का दौरा किया। यह यात्रा शारका संगठन द्वारा आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य इजरायल और दक्षिण एशियाई देशों के बीच संबंधों को मजबूत करना बताया गया। इस खुलासे ने कई सवाल खड़े किए हैं: क्या यह गुप्त दोस्ती वास्तव में एक रणनीतिक गठजोड़ है? क्या पाकिस्तान का गाजा के प्रति प्रेम केवल एक दिखावा है? और क्या यह कदम क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव का संकेत देता है?
पाकिस्तान ने अपनी स्थापना के बाद से ही इजरायल को मान्यता नहीं दी है। इसका आधिकारिक रुख हमेशा से फिलिस्तीन के समर्थन में रहा है, खासकर गाजा पट्टी में इजरायली सैन्य कार्रवाइयों के खिलाफ। पाकिस्तानी सरकार, सेना और जनता ने बार-बार गाजा में मानवीय संकट की निंदा की है। उदाहरण के लिए, कराची में हजारों लोगों ने गाजा के समर्थन में मार्च निकाला और मुस्लिम नेताओं से इजरायल के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। फिर भी, इस गुप्त यात्रा ने पाकिस्तान के इस रुख पर सवालिया निशान लगा दिया है।पाकिस्तानी पासपोर्ट पर साफ लिखा होता है कि यह इजरायल को छोड़कर सभी देशों के लिए वैध है। इसके बावजूद, प्रतिनिधिमंडल के पासपोर्ट पर न तो प्रवेश और न ही निकास की मुहर लगी, जो इस यात्रा की गोपनीयता को और गहरा करता है। इससे पहले भी, कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि पाकिस्तानी सेना के अधिकारी चुपके से इजरायल का दौरा कर चुके हैं। अजरबैजान जैसे मध्यस्थ देशों के जरिए दोनों देशों के बीच अप्रत्यक्ष संपर्क की बात भी सामने आई है। ये संकेत देते हैं कि पाकिस्तान का सार्वजनिक और निजी रुख एक-दूसरे से मेल नहीं खाता।
पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, यह प्रतिनिधिमंडल इजरायल के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को समझने के लिए गया था। लेकिन इस दावे पर विश्वास करना मुश्किल है, क्योंकि इसमें आईएसआई के एजेंटों की मौजूदगी और यात्रा की गोपनीयता सामान्य राजनयिक या शैक्षणिक दौरे से परे संकेत देती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह दौरा पाकिस्तान की इजरायल नीति में बदलाव का संकेत हो सकता है। शारका संगठन, जिसे 2020 के अब्राहम समझौते के बाद इजरायल, यूएई और बहरीन ने मिलकर बनाया, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने का दावा करता है। क्या यह यात्रा अब्राहम समझौते जैसे बड़े कूटनीतिक ढांचे का हिस्सा है, या फिर पाकिस्तान की अपनी रणनीतिक जरूरतों का परिणाम? एक संभावना यह है कि पाकिस्तान क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को देखते हुए इजरायल के साथ गुप्त सहयोग की दिशा में बढ़ रहा है। भारत के साथ तनाव और अफगानिस्तान में तालिबान के उभार ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया है। ऐसे में, इजरायल जैसे शक्तिशाली देश के साथ संबंध पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक लाभ हो सकते हैं, खासकर अगर यह अमेरिका और उसके सहयोगियों के समर्थन को सुनिश्चित करता है। इजरायल की सैन्य और तकनीकी श्रेष्ठता भी पाकिस्तानी सेना के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकती है। दूसरी ओर, यह दौरा गाजा और हमास के खिलाफ इजरायल के अभियान से संबंधित खुफिया जानकारी साझा करने का प्रयास हो सकता है। प्रतिनिधिमंडल ने उन स्थानों का दौरा किया जहां 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने हमला किया था। यह संभव है कि पाकिस्तान, जो स्वयं आतंकवाद से जूझ रहा है, हमास जैसे समूहों के खिलाफ इजरायल के अनुभव से सीखना चाहता हो। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान का यह कदम गाजा के प्रति उसके सार्वजनिक समर्थन को कमजोर करता है?
पाकिस्तान ने हमेशा गाजा और फिलिस्तीन के मुद्दे को अपनी विदेश नीति का केंद्र बनाए रखा है। गाजा में इजरायली हमलों की निंदा करते हुए पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फिलिस्तीन के समर्थन की वकालत की है। लेकिन इस गुप्त यात्रा ने इस रुख की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए हैं। अगर पाकिस्तान वास्तव में गाजा के प्रति संवेदनशील है, तो आईएसआई का इजरायल दौरा क्यों? क्या यह केवल एक रणनीतिक चाल है, या फिर पाकिस्तान की नीति में दोहरापन है?
गाजा में इजरायली हमलों ने भारी तबाही मचाई है। 50,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं, पाकिस्तान ने इन हमलों की निंदा की, लेकिन उसका इजरायल के साथ गुप्त संपर्क यह सुझाव देता है कि उसकी प्राथमिकताएं बदल रही हैं। यह संभव है कि पाकिस्तान गाजा के मुद्दे को केवल घरेलू और क्षेत्रीय जनता को लुभाने के लिए इस्तेमाल कर रहा हो, जबकि वास्तव में वह अपनी रणनीतिक जरूरतों को प्राथमिकता दे रहा है।क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थइस गुप्त दोस्ती के कई निहितार्थ हैं। सबसे पहले, यह भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित कर सकता है। भारत का इजरायल के साथ मजबूत सैन्य और कूटनीतिक संबंध है। अगर पाकिस्तान भी इजरायल के साथ संबंध बनाता है, तो यह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को जटिल कर सकता है। भारत इस घटनाक्रम को सतर्कता से देख रहा है, खासकर पहलगाम हमले के बाद, जिसमें आईएसआई की संलिप्तता का आरोप है।दूसरा, यह कदम मुस्लिम दुनिया में पाकिस्तान की स्थिति को कमजोर कर सकता है। सऊदी अरब, ईरान और अन्य मुस्लिम देश गाजा के मुद्दे पर एकजुट हैं। अगर पाकिस्तान का इजरायल के साथ गुप्त सहयोग उजागर होता है, तो उसकी विश्वसनीयता को गहरा झटका लग सकता है।तीसरा, यह यात्रा अब्राहम समझौते जैसे बड़े कूटनीतिक प्रयासों का हिस्सा हो सकती है, जिसके तहत इजरायल और कई अरब देशों ने संबंध सामान्य किए हैं। क्या पाकिस्तान भी इस प्रक्रिया में शामिल होने की तैयारी कर रहा है? अगर ऐसा है, तो यह दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व की भू-राजनीति में एक बड़ा बदलाव होगा।
पाकिस्तान सेना और आईएसआई की इजरायल यात्रा ने एक बार फिर उसके दोहरे चरित्र को उजागर किया है। एक तरफ, वह गाजा के समर्थन में जोर-शोर से बयानबाजी करता है; दूसरी तरफ, वह उसी देश के साथ गुप्त संबंध बना रहा है, जिसे वह सार्वजनिक रूप से निशाना बनाता है। यह कदम रणनीतिक हो सकता है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय अलगाव से बचना, सैन्य और तकनीकी लाभ हासिल करना, या वैश्विक शक्तियों के साथ तालमेल बिठाना हो। लेकिन यह भी सत्य है कि इस गुप्त दोस्ती ने पाकिस्तान के गाजा के प्रति प्रेम को संदेह के घेरे में ला दिया है।अंततः, यह घटनाक्रम हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सिद्धांतों की जगह केवल हितों का बोलबाला है? पाकिस्तान का यह कदम न केवल उसके अपने नागरिकों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक है: कूटनीति के खेल में, दिखावा और हकीकत के बीच का फासला बहुत गहरा हो सकता है।( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, नवोदयन्स हाइट्स मासिक पत्रिका के संपादक हैं)