-मनोज स्वतंत्र
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाले गठबंधन की सफलता और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की हार के पीछे कई प्रमुख राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारण रहे। इस विश्लेषण में चुनाव परिणामों, प्रमुख मुद्दों, रणनीतियों, और राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा की गई है।
झारखंड की राजनीति में आदिवासी समुदाय का बड़ा प्रभाव है। हेमंत सोरेन और JMM ने आदिवासी अधिकारों, भूमि संरक्षण, और जल, जंगल, जमीन की रक्षा जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। यह समुदाय हेमंत सोरेन को अपना प्रबल समर्थक मानता है।
हेमंत सरकार ने पिछली अवधि में कई जनहितकारी योजनाएं लागू कीं, जैसे कि “सीधी लाभ योजना,” जिसमें किसानों, महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की गई। ये योजनाएं ग्रामीण मतदाताओं को लुभाने में सफल रहीं।
भाजपा के नेतृत्व में विपक्षी दल प्रभावी तरीके से आदिवासी क्षेत्रों और ग्रामीण मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में विफल रहे। JMM ने क्षेत्रीय राजनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखा।
युवाओं के लिए रोजगार सृजन और शिक्षा क्षेत्र में सुधार के वादों ने JMM की लोकप्रियता बढ़ाई। बेरोजगारी झारखंड का बड़ा मुद्दा है, और सोरेन सरकार ने इसे प्राथमिकता दी।
JMM ने क्षेत्रीय पहचान और स्वाभिमान के मुद्दे को उभारा, जिसे भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी प्रभावी तरीके से संबोधित नहीं कर पाई।
वहीं भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय योजनाओं को केंद्र में रखा। हालांकि, स्थानीय मतदाता क्षेत्रीय मुद्दों और झारखंड के विशेष संदर्भ में उठाए गए वादों को अधिक प्राथमिकता दे रहे थे।
भाजपा आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में JMM का मुकाबला करने में विफल रही। भूमि अधिग्रहण कानूनों और वन अधिकारों से संबंधित नीतियों ने आदिवासी समुदाय में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ाई।
कांग्रेस, JMM और RJD का गठबंधन मतदाताओं के बड़े हिस्से को एकजुट करने में सफल रहा। भाजपा अकेले इनका सामना करने में असफल रही।
भाजपा के पास झारखंड में ऐसा कोई मजबूत स्थानीय नेता नहीं था, जो हेमंत सोरेन के करिश्माई नेतृत्व का सामना कर सके।
पिछली भाजपा सरकार के दौरान आदिवासियों और किसानों के बीच असंतोष देखा गया। भूमि अधिकारों से जुड़े आंदोलनों और नीतियों ने भाजपा के खिलाफ माहौल तैयार किया।
JMM ने झारखंड के विशिष्ट मुद्दों, जैसे कि आदिवासी पहचान, स्थानीय रोजगार और भूमि अधिकारों को प्राथमिकता दी। गांव-गांव जाकर मतदाताओं से संवाद स्थापित किया गया। गठबंधन का बेहतर समन्वय: कांग्रेस और RJD के साथ गठबंधन ने JMM के वोट शेयर को मजबूत किया।
भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय योजनाओं पर अधिक जोर दिया, जबकि स्थानीय समस्याओं को अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया। भाजपा आदिवासी और दलित समुदायों को एकजुट करने में सफल नहीं रही। हेमंत सोरेन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, लेकिन ये मतदाताओं को JMM के खिलाफ मोड़ने में पर्याप्त नहीं थे।
प्रमुख मुद्दे जिन्होंने चुनाव परिणाम तय किए
- आदिवासी अधिकार और भूमि संरक्षण: भूमि अधिग्रहण और वन अधिकारों से जुड़े विवाद भाजपा के खिलाफ गए। JMM ने इस मुद्दे को अपनी चुनावी रणनीति का मुख्य हिस्सा बनाया।
- बेरोजगारी और गरीबी: राज्य में बेरोजगारी की समस्या गंभीर है। JMM ने स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन का वादा किया, जिससे युवाओं का समर्थन मिला।
- महिलाओं के मुद्दे: महिलाओं की सुरक्षा और उनके लिए विशेष योजनाएं JMM की चुनावी अपील का हिस्सा थीं।
- राष्ट्रीय और राज्यीय राजनीति का संघर्ष: झारखंड के मतदाता राज्यीय पहचान और क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं। भाजपा का राष्ट्रवाद आधारित प्रचार झारखंड के क्षेत्रीय राजनीतिक वातावरण में काम नहीं आया।