बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत को लेकर एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कहा है कि बेल (जमानत) न्याय व्यवस्था में एक सामान्य अधिकार है, और उसे न देना अपवाद होना चाहिए। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने हत्या के एक मामले में 6 वर्षों से बिना ट्रायल जेल में बंद आरोपी को जमानत देते हुए यह सख्त टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक ट्रायल के बिना जेल में रखना ‘प्री-ट्रायल सजा’ जैसा है, जो व्यक्ति के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का हनन है। अदालत ने आर्थर रोड जेल की भीषण स्थिति का भी ज़िक्र किया, जहां 50 कैदियों के लिए बने बैरकों में 220 से अधिक बंदियों को रखा जा रहा है।
न्यायमूर्ति जाधव ने दो अंडरट्रायल कैदियों द्वारा लिखे लेख ‘प्रूफ ऑफ गिल्ट’ का हवाला देते हुए पूछा— “कब तक किसी नागरिक को तेज और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित रखा जा सकता है?” कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के रवैये पर भी सवाल उठाए और कहा कि केवल अपराध की गंभीरता के आधार पर बेल का विरोध उचित नहीं है, जब तक आरोपी दोषी साबित न हो, वह निर्दोष माना जाएगा — यह कानून की बुनियादी बात है।
कोर्ट की यह टिप्पणी देश भर में न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति, जेलों में बढ़ती भीड़ और बेल की व्याख्या को लेकर एक अहम संदर्भ बनकर उभरती है। यह फैसला न्याय और आज़ादी के बीच संतुलन के सिद्धांत को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।