- मनोज स्वतंत्र
मणिपुर, जो उत्तर-पूर्व भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है, पिछले कुछ महीनों से गंभीर जातीय हिंसा का शिकार हो रहा है। यह हिंसा मुख्य रूप से दो प्रमुख समुदायों, मैतेई और कुकी, के बीच हो रही है। इस संघर्ष ने राज्य की सामाजिक और प्रशासनिक संरचना को बुरी तरह प्रभावित किया है।
मणिपुर में कई घटनाएं मानवता के खिलाफ थीं, जिनसे हिंसा और पीड़ा में इजाफा हुआ।हिंसा के दौरान महिलाओं को सार्वजनिक रूप से नग्न कर परेड कराना और उनके साथ बलात्कार जैसी घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर दिया।
मैतेई समुदाय, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 53% है, ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मांगा है। इस मांग का विरोध कुकी और अन्य पहाड़ी आदिवासी समुदायों ने किया, क्योंकि इससे उनके अधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है।
मैतेई समुदाय घाटी में रहता है, जबकि कुकी और अन्य आदिवासी समुदाय पहाड़ी क्षेत्रों में। राज्य के वन क्षेत्र और भूमि कानूनों को लेकर भी तनाव गहराया है।
मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को ST दर्जा देने के लिए अनुशंसा करने के आदेश ने हिंसा को बढ़ावा दिया। इसके बाद आदिवासी समुदायों ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला, जिससे टकराव और हिंसा भड़क उठी।
कुछ इलाकों में अवैध अफीम की खेती को लेकर भी समुदायों में संघर्ष हुआ है, जिसे राज्य सरकार द्वारा उखाड़ने की कार्रवाई के दौरान तनाव और बढ़ा।
हिंसा में अब तक 120 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 3,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। लगभग 50,000 लोग अपने घरों से विस्थापित होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। लगातार जारी कर्फ्यू और इंटरनेट प्रतिबंध ने आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया है। साथ ही, शैक्षणिक संस्थानों पर भी गहरा असर पड़ा है। हालात को नियंत्रित करने के लिए राज्य में सेना और अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की गई है। हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
मणिपुर की इस स्थिति से साफ है कि सामुदायिक और प्रशासनिक स्तर पर आपसी विश्वास बहाल करना ही स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
मणिपुर हिंसा में अब तक कई गलतियाँ और समस्याएँ सामने आई हैं, जिनकी वजह से स्थिति और बिगड़ गई।मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की सिफारिश के बाद राज्य सरकार ने समय रहते इस फैसले के परिणामों पर ध्यान नहीं दिया। यह निर्णय समुदायों के बीच असंतोष और हिंसा का कारण बना।
स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बल हिंसा की प्रारंभिक घटनाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ रहे।
समय पर प्रभावी कदम न उठाने के कारण हालात और खराब हो गए। हिंसक झड़पों के बाद भी कई इलाकों में सुरक्षा की कमी देखी गई।
मैतेई और कुकी समुदायों के बीच पहले से ही तनाव था, जिसे सही समय पर सुलझाया नहीं गया।
समुदायों के बीच भरोसा बहाल करने के लिए प्रशासन ने ठोस प्रयास नहीं किए।
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर फैलती अफवाहों ने हिंसा को और बढ़ावा दिया। प्रशासन ने इंटरनेट सेवाएं बंद कीं, लेकिन यह कदम पहले नहीं उठाया गया, जिससे नुकसान अधिक हुआ।
50,000 से अधिक लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं, लेकिन राहत सामग्री और सुविधाओं की भारी कमी है। इससे लोगों का गुस्सा और असंतोष बढ़ा है। राज्य और केंद्र सरकार के बीच तालमेल की कमी भी समस्या का बड़ा कारण रही। राजनीतिक नेताओं के बयान और दृष्टिकोण ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष और प्रशासनिक विफलताओं के कारण राज्य के युवाओं का हथियार उठाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह समस्या न केवल राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि युवाओं के भविष्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है।
कुकी और मैतेई समुदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे जातीय विवाद ने युवाओं को अपने समुदाय की रक्षा के लिए हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया है।
हिंसा और सरकारी सुरक्षा की कमी ने युवाओं को आत्मरक्षा के लिए हिंसक रास्ते अपनाने की ओर धकेला है।
मणिपुर पहले से ही उग्रवाद और माओवादी प्रभाव से जूझ रहा है। हिंसा के इस माहौल में ऐसे गुट युवाओं को भर्ती करने में सफल हो रहे हैं।
राज्य में रोजगार और शिक्षा के सीमित अवसरों के कारण निराश युवा हिंसक गुटों में शामिल हो रहे हैं।
हाल के महीनों में कई युवाओं को हथियारों के साथ देखा गया, जिनमें से कुछ सामुदायिक सुरक्षा के नाम पर अपने-अपने क्षेत्रों में गश्त कर रहे हैं।
सुरक्षा एजेंसियों ने रिपोर्ट दी है कि हिंसा के दौरान राज्य से बड़ी संख्या में हथियार चोरी हुए हैं, जो अब इन युवाओं के हाथ में पहुंच रहे हैं।
कुछ मामलों में युवा संगठनों ने अपनी व्यक्तिगत सेनाएं बनाई हैं, जिनका उपयोग जातीय लड़ाइयों में हो रहा है।
युवाओं का हथियार उठाना केवल जातीय संघर्ष तक सीमित नहीं रहा, यह सामाजिक और आपराधिक गतिविधियों में भी इजाफा कर रहा है। इस हिंसक प्रवृत्ति के कारण युवाओं का ध्यान शिक्षा और कैरियर निर्माण से हट रहा है।
मणिपुर का युवा वर्ग राज्य का भविष्य है। यदि सही समय पर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो हथियार उठाने की यह प्रवृत्ति पूरे समाज को लंबे समय तक नुकसान पहुंचा सकती है। शिक्षा, रोजगार, और खेल-कूद में युवाओं को शामिल करने के लिए विशेष योजनाएं शुरू की जानी चाहिए।
मणिपुर हिंसा से जुड़े ये पहलू यह दर्शाते हैं कि समग्र और संतुलित दृष्टिकोण अपनाए बिना समस्या का समाधान संभव नहीं है। विभिन्न समुदायों के बीच संवाद की कमी समस्या के समाधान में बड़ी बाधा बनी हुई है। केंद्र और राज्य सरकार को विभिन्न समुदायों के नेताओं के साथ नियमित संवाद स्थापित करना चाहिए। सरकार को मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में समान विकास सुनिश्चित करना चाहिए। भूमि और जनजातीय अधिकारों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।
मणिपुर हिंसा में राजनीतिक नेतृत्व और समन्वय की कमी स्पष्ट रूप से सामने आई।
नेताओं को हिंसा की जिम्मेदारी लेते हुए शांति और समाधान के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। महिलाओं और कमजोर वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानूनों का पालन किया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार को राज्य में स्थायी समाधान के लिए मजबूत भूमिका निभानी होगी।
मणिपुर में हुई घटनाएं केवल एक राज्य की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि यदि समय रहते प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व कदम नहीं उठाता, तो मानवीय मूल्यों का ह्रास होता रहेगा।